दिल्ली के पुराने और नए दिलवाले दोस्तों ने जीत लिया दिल

एशिया कप के बाद लौट रहा था तो दिल में आया कि क्यों न एक दिन के लिए दिल्ली में रुककर पटना चला जाए, क्योंकि आख़िरी बार दिल्ली आए हुए सालों हो गए थे और न्यूज़ चैनल में साथ काम किए पुराने मित्रों से मिलने का भी मन था।

एक बार ये भी ख़्याल आया था कि न्यूज़ चैनल छोड़ने के बाद क्या पता अब फ़िल्मसिटी वाले दोस्तों के बीच वैसी ही बॉन्डिंग होगी भी या नहीं। फिर भी सभी से मिलने और पुराने संबंधों को लेकर चलने वाली मेरी फ़ितरत ने मुझे बाध्य किया कि एक दिन के लिए रुकना चाहिए।

दोपहर को दिल्ली लैंड किया, जिन कुछ दोस्तों को पता था वह लगातार कहते रहे कि आपको मेरे यहाँ रुकना है। लेकिन किसी एक के यहाँ रुकने का मतलब दूसरे को ख़राब लगना, ये सोचते हुए मैंने होटल में ही रुकने का फ़ैसला किया। फिर होटल पहुँचते ही फ़ोन आने लगे कि आप आ गए हैं ?

विवेक तो मेरे होटल पहुँचने के 10 मिनट के अंदर में रूम में था, मानो इंतज़ार ही में बैठा हो। फिर कई मित्र जो अपने अपने ऑफ़िस में थे उनके कॉल आने लगे कि कहाँ मिलना है।

एक एक से कहाँ मिला जाए ये सोच ही रहा था कि दिमाग़ में ख़्याल आया कि क्यों न फ़िल्मसिटी (नोएडा, जहां क़रीब क़रीब सारे मीडिया संस्थान हैं) ही चल दूँ और सभी से एक साथ मिल भी लूँगा और वह भी काम करते हुए ही एक छोटा सा ब्रेक लेते हुए मिल लेंगे।

ख़ैर ये आइडिया सही रहा और मैं पहुँच गया फ़िल्मसिटी, जहां मुलाक़ातों का दौर शुरू हुआ। यहाँ स्पेशल मेंशन करना चाहूँगा सईद भाई (आजतक के मशहूर और हर दिल अज़ीज़ एंकर सईद अंसारी) और पीयूष पांडे सर का, जो बेहद व्यस्त होने के बाद भी जैसे ही उन्हें पता चला तो तुरंत आ गए। सईद भाई तो स्टूडियो में थे जब मैंने उन्हें मैसेज छोड़ा था कि मैं फ़िल्मसिटी में हूँ।

स्टूडियो से निकलते ही उनका कॉल आया कि मैं बस दो मिनट में आया ललन चाय वाले की दुकान पर मिलते हैं, अभी दो मिनट पूरे हुए भी नहीं थे की सईद भाई नीचे थे और जिस बेबाकी से वह आकर मिले लगा कि अभी भी न्यूज़ चैनल वाला पुराना सैयद सभी को याद है। ❤️

फिर ललन की चाय दुकान ही अपनी मुलाक़ात का अड्डा बन गया जहां भीड़ लगती गई। एबीपी से वाहिद, ज़ी सलाम से शहबाज़, आजतक से अनंत, तो अरसलान सभी इकट्ठा थे। सईद भाई की ही तरह मेरे पुराने मित्र और बड़े भाई मक़सूद जो अभी ज़ी हिन्दुस्तान की पहचान हैं, वह भी स्टूडियो में अपना बुलेटिन निपटाकर नीचे थे, मैं और मक़सूद भाई 2011 के बाद मिल रहे थे।

अभी हम सभी लोग बात कर ही रहे थे और मैंने कुछ फ़ोटो सोशल मीडिया पर डाला ही था कि और भी कई पुराने मित्रों के कॉल आने लगे कि अरे सैयद भाई आप फ़िल्मसिटी में हैं क्या ? अभी मैंने तस्वीर देखी और फिर कई दोस्त और नीचे आ गए, जिनमें आजतक से ही विशाल, ज़ी से राजन भाई, रोहित, संतोष थे। रोहित से भी मैं 2011 के बाद मिल रहा था।

दैनिक जागरण के पुराने मित्र विप्लव ने भी सोशल मीडिया पर जैसे ही तस्वीर देखी, मुझे कॉल किया और सेक्टर-16 ऑफ़िस से जल्दी निकलकर फ़िल्मसिटी आ गया। देखते ही देखते वक़्त का पता नहीं चल रहा था और शाम 5.30 से रात का 9 बज गया लेकिन मिलने का सिलसिला जारी था। जिसने मेरे दोनों फ़ैसले को बिल्कुल सही साबित किया – पहला पटना वाया दिल्ली जाने का और दूसरा फ़िल्मसिटी आने का।

कुछ ऐसे भी मित्र थे जिनसे सोशल मीडिया के ज़रिए ही परिचय हुआ था और वह भी इस मुलाक़ात का ऐसा हिस्सा बने थे कि लग ही नहीं रहा था कि हम पहली बार मिल रहे हों। तो कुछ ऐसे भी दोस्त थे जो उस दिन ऑफ़ पर थे तो कोई लंबी छुट्टी पर थी जैसे टाईम्स नाऊ हिंदी की एंकर श्वेता श्रीवास्तव – जिसने बताया कि अरे यार मेरा एक्सीडेंट हो गया है और 15 दिन से मैं ऑफ़िस नहीं जा रही, और अफ़सोस करने लगी कि मुलाक़ात नहीं हो पाएगी, मैं भी इतने कम समय के लिए आया था कि चाहकर भी उससे मिलने नहीं जा पाया।

इसी तरह कई ऐसे भी अज़ीज़ दोस्त थे जिनका संस्थान फ़िल्मसिटी में नहीं था जैसे गौरव से नहीं मिल पाया, देवेश जी और ऋतु भाई से मुलाक़ात नहीं हो पाई। फ़ोन पर तो बात हुई लेकिन पता है उन्हें अच्छा नहीं लगा होगा लेकिन अगली बार उनके साथ स्पेशल मुलाक़ात का वायदा रहा। 🙌

पूण्य प्रसून वाजपेयी सर को भी जैसे ही मेरा मैसेज मिला तो उन्होंने तुरंत रिप्लाई किया और कहा कि थोड़ी सी टाईमिंग ग़लत हो गई एयरपोर्ट पर हूँ और नागपुर जा रहा। अगली बार मिलते हैं ✌️

अंत में यही कहना चाहूँगा कि इतना प्यार देने के लिए और इस तरह दिल में बसाकर रखने के लिए आप तमाम दोस्तों और बड़ों का बहुत बहुत शुक्रिया 🙏 आपने मुझे हिम्मत दी और अब वायदा रहा अगली बार ज़्यादा दिनों के लिए आऊँगा और जिनसे किसी वजह से नहीं मिल पाया उनसे अभी माज़रत चाहूँगा इस वायदे के साथ कि अगली बार आपके साथ ज़्यादा समय बिताऊँगा 🤝

फ़िल्मसिटी

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