आज पत्रकार नहीं एक भारतीय क्रिकेट फ़ैन बोल रहा है और पूछ भी रहा है !

मेरे साथ साथ तमाम भारतीय क्रिकेट फ़ैन्स के लिए तो समझिए आज यानी 10 जुलाई 2019 को ही वर्ल्ड कप ख़त्म हो गया। हालांकि अभी दो बड़े मैच बचे हैं, एक तरफ़ जहां मौजूदा वर्ल्ड चैंपियन और पांच बार की विश्व विजेता ऑस्ट्रेलिया के सामने पहली बार वर्ल्ड कप पर कब्ज़ा जमाने का सपना देख रही मेज़बान इंग्लैंड है। तो इनके विजेता की टक्कर भारत को पहले सेमीफ़ाइनल में हराने वाली न्यूज़ीलैंड से 14 जुलाई को होगी और इस दिन ही अगले 4 सालों तक के लिए वर्ल्ड चैंपियन के नाम पर मुहर भी लगेगी।

लेकिन अब ये सब भारतीय फ़ैन्स के लिए उतना मायने नहीं रखते, हां मीडिया और क्रिकेट एक्सपर्ट अभी भी बाल की खाल निकालते रहेंगे और हार का विलेन अपने अपने हिसाब से बनाते रहेंगे। पर एक सच्चे फ़ैन का दिल टूट चुका है, और ये कब टूटा है ? क्या रविंद्र जडेजा के आउट होने पर ? क्या 5 रनों पर 3, 24 रनों पर 4, 71 रनों पर 5 और 92 रनों पर 6 विकेट गिरने के बाद टूटा ? या फिर महेंद्र सिंह धोनी के रन आउट होते ही स्टंप्स के साथ साथ फ़ैन्स की ख़ुशियां भी बिखर गईं ? इनमें से ज़्यादातर सवालों का जवाब आप सभी हां में दे रहे होंगे, या किसी को लग रहा होगा सबसे ज़्यादा तो जडेजा और धोनी के आउट होने पर टूटा। कोई कोहली तो कोई श्रीमान शतक यानी रोहित शर्मा को पैवेलियन लौटता देख रो रहा होगा।

आप सभी अपनी अपनी जगह सही हैं, इन सभी लम्हों ने मेरा भी दिल तोड़ा, मार्टिन गप्टिल के सीधे थ्रो ने जैसे ही स्टंप्स बिखेरे और माही को मैदान से बाहर भेजा तो यक़ीन मानिए मेरी आंख़ों से आंसू भी छलक पड़े और ख़ूब ज़ोर ज़ोर से रोया भी और लिखते हुए भी आंखें नम हैं बल्कि आज के बाद मार्टिन गप्टिल का नाम सुनते ही और तस्वीर देखते ही धोनी का आउट होना और भारत की हार का मंज़र याद आ जाएगा। क्योंकि अब ये दिल भी मान गया है कि शायद धोनी को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में मैंने मैदान पर आख़िरी बार देखा।

पर इन सब लम्हों के साथ साथ एक ऐसा भी पल था जिसने सबसे पहले दिल को तोड़ा, और शायद वही लम्हा या फ़ैसला था जिसने इस सेमीफ़ाइनल की बोहनी ही ख़राब कर दी थी। और वह था भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली का टॉस के समय ये बताना कि बादल से घिरे मैनचेस्टर और नमी से भरी पिच पर आज 4 मैचों में 14 विकेट लेने वाले मोहम्मद शमी नहीं खेल रहे हैं। ये एक ऐसा फ़ैसला था जिसने सभी को हैरान कर दिया था, मेरा दिल तभी टूट गया था और लग रहा था कि बड़े मैच में ये कोहली का सबसे बड़ा ब्रेन फ़ेड मोमेंट है।

हालांकि तब एक भारतीय फ़ैन होने के नाते शमी से ऊपर टीम इंडिया की जीत ज़रूरी थी, मन में ये सवाल ज़रूर कचोट रहा था कि आख़िर क्या वजह हो सकती है मोहम्मद शमी को न खिलाए जाने की। लेकिन मन को यही समझा रहा था और दुआ कर रहा था कि कोई बात नहीं बस जीत हो जाए, क्योंकि वह ज़्यादा ज़रूरी है। मेरी ही तरह सवा सो करोड़ देशवासियों के हाथ अपनी अपनी तरह से भारत की जीत की दुआओं के लिए उठ रहे थे। नतीजा ये हुआ कि बारिश की आंख मिचौली के बीच वनडे से टूडे बने मैच में भारतीय गेंदबाज़ों ने कीवियों को 239 रनों पर ही रोक दिया।

हर तरफ़ ख़ुशियां मननी भी शुरू हो गई, जब रोहित शर्मा और केएल राहुल क्रीज़ पर आए तो ब्रॉडकास्टर के ज़रिए दोनों टीमों की जीतने की उम्मीद का प्रतिशत भी कुछ इस तरह था, भारत 98%, न्यूज़ीलैंड 2%। मतलब 240 रन औपचारिकता मात्र थी, पर वह भूल गए थे कि ये क्रिकेट है और पिच पर तेज़ गेंदबाज़ों के लिए मदद। वैसे जब कप्तान कोहली भी इस पिच पर अपने सबसे बड़े योद्धा को पानी पिलाने के लिए रख दिया था तो फिर ब्रॉडकास्टर के गणित पर क्या सवाल उठाना।

अब ऐसे समझिए अगर जसप्रीत बुमराह और भुवनेश्वर कुमार के बाद भारत के पास भी तीसरे सीमर के तौर पर मोहम्मद शमी होते तो क्या न्यूज़ीलैंड 200 भी बना पाती ? हम उन्हें 240 के अंदर रोक ख़ुश थे कि ये तो बहुत छोटा स्कोर है, लेकिन ये भूल गए थे कि सीमिंग कंडीशन्स और बारिश के बाद गीली पिच पर ये स्कोर आसान नहीं होने वाला। वह तो भला हो रविंद्र जडेजा और एम एस धोनी का जिन्होंने लड़ने का जज़्बा दिखाते हुए भारत को जीत की दहलीज़ तक पहुंचा दिया था। और हां, धोनी धीमा नहीं खेल रहे थे बल्कि वह हमेशा की तरह एक कलकुलेशन रख कर खेल रहे थे और एक तरफ़ की विकेट बचाते हुए जडेजा को खुलकर खेलने का हौसला दे रहे थे। उन्हें मालूम था कि आख़िरी ओवर जिमी नीशम या कॉलिन डी ग्रैंडहोम ही करेंगे जिनपर 15-18 रन भी बनाया जा सकता है। लेकिन गप्टिल के सीधे थ्रो ने माही और भारत की जीत के कलकुलेशन को बिगाड़ दिया जिसकी टीस धोनी के चेहरे पर साफ़ दिख रही थी।

मेरी नज़र में इस मैच में हार की सबसे बड़ी वजह रही मोहम्मद शमी को बाहर बैठाना, अगर बल्लेबाज़ी ही मज़बूत करनी थी (जिसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ) तो युज़वेंद्र चहल की जगह शमी को खिलाया जा सकता था या फिर दिनेश कार्तिक की जगह ही शमी को होना चाहिए था, वैसे भी कार्तिक को अब संन्यास ले ही लेना चाहिए। अपने पूरे करियर में उन्होंने बांग्लादेश के ख़िलाफ़ सौम्य सरकार की गेंद पर छक्का मारने के सिवाए ऐसा कुछ नहीं कर पाए हैं जिसके लिए वह टीम में जगह बना सकें।

अंत में यही कहूंगा और कोहली साहब से सवाल पूछूंगा कि आख़िर शमी को बाहर बैठाने की ग़लती अभी भी आप मानेंगे या नहीं ? या इसके पीछे अपने बेतुके तर्क को ही बढ़ावा देंगे, कोहली जी अभी भी वक़्त है मैच जीतने के लिए सिर्फ़ अच्छा खेलना या गाली बकना ज़रूरी नहीं, बल्कि कुछ अच्छे फ़ैसले भी ज़रूरी होते हैं। अब तक तो आपके अटपटे फ़ैसले और टीम चयन को विकेट के पीछे रहते हुए महेंद्र सिंह धोनी संभाल लेते थे लेकिन उनके जाने के बाद आपका क्या होगा ? वक़्त है सुधर जाइए वरना हम लोग भारतीय फ़ैन्स हैं, जो भारत को तीन तीन आईसीसी ट्रॉफ़ी जिताने वाले कप्तान और हर दिल अज़ीज़ धोनी को गाली बकने से पीछे नहीं हटते वह आपका क्या करेंगे, ज़रा सोचिए और समझिए। अगले वर्ल्ड कप में चार साल हैं, इसकी तैयारी अभी से ही करना शुरू कर दीजिए, कहीं ऐसा न हो कि धोनी के साथ साथ आपका भी हो जाए ये आख़िरी विश्व कप।